Tuesday 29 March 2011

पटना - एक सुंदर महानगर के सपने

सिटी डेवलपमेंट प्लान (2006-2012)
JNNURM ने ये प्लान तैयार किया। इसमें शहरी विकास के सारे पहलू शामिल थे। ये प्लान पटना महानगर क्षेत्र की सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक पारंम्परिक और पर्यावरण संबंधी तमाम जरुरतों को ध्यान में रख कर तैयार किया गया था।इसमें शहरी गरीबी से जुड़े पहलुओं का भी ध्यान रखा गया था। निवेश की ये महत्वाकांक्षी योजना थी।
सिटी डेवलपमेंट प्लान फॉर पटना 2021
ये प्लान सिर्फ उन क्षेत्रों तक सीमित है जो पटना रीजनल डेवलपमेंट ऑथरिटी के तहत आते हैं। यानी पटना के वो इलाके जो पटना नगर निगम, दानापुर नगर पालिका, फुलवारीशरीफ नगर पालिका, दानापुर कैन्टॉन्मेंट क्षेत्र, खगौल नगर पालिका  के दायरे में आते हैं।
पटना नगर पालिका क्षेत्र              45 स्क्वायर किलो मीटर
दानापुर नगर पालिका क्षेत्र        11 स्क्वायर किलो मीटर
खगौल नगर पालिका क्षेत्र    -     3.66 स्क्वायर किलो मीटर
दानापुर कैन्टॉन्मेंट क्षेत्र           3.42 स्क्वायर किलो मीटर
फुलवारीशरीफ नगर पालिका क्षेत्र    6.48 स्क्वायर किलो मीटर
पटना रीजनल डेवलपमेंट एरिया (PRDA) की मौजूदा आबादी करीब 17 लाख है। इसमें 13.66 लाख की आबादी पटना नगर निगम क्षेत्र में रहती है।
पटना सिटी डेवलपमेंट प्लान 2021 में निवेश की कुछ योजनाएं ऐसी भी हैं जिनके पूरे होने में तीन दशक लगेंगें।
ये प्लान बिहार सरकार के शहरी विकास मंत्रालय, पीआरडीए, पीएमसी, दानापुर नगर पालिका, फुलवारीशरीफ नगर पालिका, खगौल नगर पालिका, बिहार राज्य जल परिषद और पीएचइडी विभाग ने मिल कर तैयार किया है।
शहर की आबादी 1971 से 2001 के बीच 6.02 लाखसे बढ़कर 16.97 लाख हो गई है। 1991 में पटना की आबादी 11.47 लाख थी। 2011 में यहां की आबादी  22.5 लाख हो जाने का अनुमान है। 2021 में 28 लाख लोग पटना महानगर क्षेत्र में होंगे।
विशेषज्ञों की राय है कि ग्रामीण क्षेत्रों में चुकी बेहद गरीबी है इसलिए पटना पर आबादी का दबाव तेजी से बढ़ेगा। फिलहाल पटना में प्रति हेक्टेयर 137 लोग रहते हैं। रोजाना तकरीबन 2 लाख लोगों का पटना आना जाना होता है। आने-जाने वालों की ये संख्या बढ़ने वाली है और आबादी के थ ही अधिरचना संबंधी जरुरतें भी बढ़ती जाएंगी। 
पटना मल्टीहेजार्ड प्रोन एरिया है। यह सेस्मिक जोन 4 में आता है। बाढ़ के खतरे से भी ये मुक्त नहीं है। तेज आंधी-तूफान के खतरे भी इस शहर पर मंडराते हैं।
पटना बिहार की सबसे महत्वपूर्ण सिटी है। ट्रेड और बिजनस के लिहाज से बिहार के तमाम शहरों से आव्वल है। शिक्षा और स्वास्थय सुविधओं का भी ये सेंटर है। शहर में एक टेक्नोलॉजी पार्क है। पटना में आइटी येक्टर के विकास पर जोर दिया जा रहा है।
वैसे पटना में औद्योगिक गतिविधियां कम हैं। कुछ ही उद्योग हैं जिनमें स्टील कास्टींग, कॉटन मील, वेयरहाउसिंग, इलेक्ट्रोनिक्स और चमड़ा एवं जूते शामिल हैं।
सीडीपी ने शहर और एसके आसपास 250 उद्योगों की पहचान की है।
सीडीपी की रिपोर्ट के मुताबिक पटना के 65 % लोग झुग्गी-झोपड़ी और बुनियादी सुविधाओं से वंचित कॉलनिओं में रहते है.। इनमें शहरी गांव भी शामिल है। 25 % आबादी झुग्गियों में रहती है। डेवलपमेंट प्लान में झुग्गी बस्तियों में सुधार की योजनाएं भी शामिल हैं। प्लान के मुताबिक 2021 तक सिर्फ 45 % आबादी ही झुग्गी बस्तियों में रहेगी।
पटना शहरी विकास क्षेत्र में गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों की आबादी करीब 2.86 लाख है।
प्लान में 6 नाईट शेल्टर बनाने की योजना है। इन बसेरों पर 15 कड़ोड़ का खर्च आएगा। झुग्गी बस्तियो में सुधार पर करीब 200 कड़ोड़ रुपए के निवेश का प्रस्ताव है।
प्लान में एतिहासिक धरोहरो के संरक्षण और पर्यटन के विकास की भी बड़ी योजनाएं शामिल हैं। पटना में 6 राष्ट्रीय महत्व के स्मारक हैं। ये स्मारक अशोक कालिन हैं। पर्यटन के विकास की संभावनाओं से चुकी अतिरिक्त आमदनी जुड़ी हुई है इसलिए प्लान में बुद्धिष्ट सर्किट, निर्वाण सर्किट और तीर्थंकर सर्किट को भी शामिल करने की योजना है। सात महत्वपूर्ण हेरिटेज साइट के विकास पर 108 करोड़ खर्च करने की योजना शामिल है। इन एतिहासिक स्थलों में अगमकुआं, दुराखी देवी मंदिर, छोटी पटनदेवी, बेगू हजाम का मस्जिद, कमल दाह जैन मंदिर, गोलघर और हरमंदरतख्त शामिल है।
जलापूर्ति की योजना तैयार करने और उन पर अमल करने की जिम्मेदारी बिहार राज्य जल परिषद की है। पटना के वॉटर सप्लाइ सेक्टर के लिए कोई मास्टर प्लान  या डीपीआर नहीं तैयार किया गया है। हाल ही में डीपीआर तैयार करमने के लिए कछ सलाहकार नियुक्त किए गए। पानी के लिए पटना अधिकांशत: भुमीगत जल पर निर्भर है। पटना में 89 ट्यूबेल्स लगे हैं। इन ट्यूब वेल्स से कुल 375 एमएलडी पानी खिंचा जाता है लेकिन रिसाव के चलते काफी पानी बेकार चला जाता है। नलों तक 175 एमएलडी  पाना ही पहुंच पाता है। पम्प की क्षमता और पाईप लाईन की क्षमता में मिस मैच होने की वजह से लीकेज की समस्या लगातार बनी हुई है।
700 किलोमीटर लम्बा वॉटरलाईन है, 1500 स्टैंड पोस्ट हैं, 284 हैंडपंप लगे हैं।
40 % सड़कों के साथ जलापूर्ती के लिए नेटवर्क बना हुआ है। पटना के 40 % लोग निजी बोरवेल लगाकर पानी हासिल करते है। जलापूर्ती में सुधार के लिए 175 करोड़ के निवेश का प्रस्ताव है।
वाटर ट्रीटमेंट प्लांट         -     20 करोड़
ट्यूब वेल / पंप             -     4.3 करोड़
सेंट्रल वाटर रिजर्ववायर     -     25 कोरोड़
ओवरहेड रिजर्ववायर        -     3.6 करोड़
जमीनअधिग्रहन            -     8.5 करोड़
लीकेज में सुधार           -     10 करोड़
पटना में जमीन का लेवल गंगा के हाई फ्लड लेवल से निचे है। जमीन उत्तर से दक्षिण की तरफ ढलुआ है। सिवरेज सिस्टम सिर्फ पटना नगर निगम क्षेत्र तक सीमित है। सिवरेज सिस्टम का लाभ सिर्फ 9.2 % आबादी को ही मिल रहा है।
बाकी आबादी सेप्टीक टैंक का इस्तेमाल करती है और बहुत सारे लोग खुले नालों को शौचालय की तरह इस्तेमाल करते हैं। 85 % लोग सिवरेज के लिए निजी व्यवस्था पर निर्भर हैं।
वाटर ड्रेनेज इन्फ्रास्टक्चर के लिए प्लान में 1527 करोड़ का प्रस्ताव है।
रोड स्ट्रीट लाईट और ट्रैफिक
टोटल रोड लेंथ 1500 किलोमीटर है।
पटना नगर निगम क्षेत्र में रोड की लम्बाई 1315 किलोमीटर है।
होलसेल मार्केट और ट्रांसपोर्ट मार्केट करीब होने की वजह से इनके बीच हाई ट्रैफिक बना रहता है। पटना में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अता पता नहीं है। रिक्शा और ऑटो रिक्शा जैसे धीमी गति के वाहन पर ही यातायात निर्भर है। सिटी ट्रैफिक पिछले 2 दशक में 67 गुना बढ़ गया है। फिलहाल करीब 3 लाख गाड़ियां पटना में रजिस्टर्ड हैं।
निजी वाहनों की संख्या लगातार बढ़ने से ट्रैफिक पर दबाव बढ़ता जा रहा है। ट्रैफिक वयवस्था में सुधार के लिए तीन चरणों में कई तरह के उपाय सुझाए गए हैं। ट्रैफिक में सुधार के लिए 602 करोड़ का प्रस्ताव है। अतिक्रमण हटाना, ट्रैफिक साइन पोस्ट, नैरो डिवाइडर, सड़कों की चौड़ाई बढ़ाना और इंटरसेक्सन में सुधार इन दिशाओं में काम होना है।
ट्रैफिक में सुधार की दूरगामी योजनाओं पर 290 करोड़ के खर्च का प्रस्ताव है। इसमें 240 करोड़ की लागत से सड़कों के निर्माण का प्रस्ताव है। गंगा के किनारे सड़क निर्माण गंगा एक्सप्रेसवे बनाने की योजना इसमें शामिल है।
सॉलिड वेस्ट मैनेज्मेंट
पटना शहर में प्रतिदिन 680 से 850 मेगाटन कचड़ा जेनरेट होता है। इसमें से ज्यादातर कचड़ा लोग सड़क पर फेंक देते हैं। सड़कों की सफाई के मामले में नगर निगम की इफिसिएंसी कम है। अपेक्षित उपकरण भी नगर निगम के पास नहीं है। सॉलिड बेस्ट डिस्पोजल के लिए कोई डिस्पोजल साईट पटना में नहीं है। अगर हालात यही रहे तो आबादी बढ़ने के साथ कचड़ा प्रबंधन की समस्या विकराल रुप ले लेगी।

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